Monday, February 27, 2017

हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे



हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे
हाँ ! चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे

जो रात होगी तो जमी से चाँदी बटोर लेंगे
चाँदी की फिर पायल बना लम्हों से बांध देंगे
पायल बजी जो हम हँसी की थाप दे देंगे
हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे

आँखों के पहरेदार बन नींदों में झाकेंगे
सपनो को फिर चुन चुन के हम पलकों पे टाकेंगे
सपनो के उस धागे से हम फलक को नाप देंगे
हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे

हम वक़्त के कंधे पे बैठ मेला ये घूम लेंगे
और जिद पकड़ मनभर के फिर तोहफे भी मांग लेंगे
यादो को फिर तारे बना अम्बर सजा देंगे
हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे

बचपन का कम्बल ओढ़ हम अन्दर दुबक लेंगे
कोई जो झाके तो उसे बाहर धकेंल देंगे
अपने ही मन को जीत फिर दुनिया हरा लेंगे
हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे
by : श्वेता गुप्ता


Sunday, March 23, 2014


चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये


चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये


नीला था जो था हरा कभी
मद्धम था जो वेगा कभी
काली पड़ी नदिया को चल निर्मल बनाए
छिन छिन पड़े इस नीर को फिर से बहाए
चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये

जो था सघन फैला कभी
पशु धन का था मेला कभी
बंजर बनी भूमि पे वन फिर से बिछाये
छोटे बड़े हर जीव को फिर से बसाये

चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये .......

चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये .........

Saturday, March 8, 2014

एक नयी शुरुआत



जो बीत गयी सो बात गयी ... अगर आप अपने जीवन में कुछ बदलना चाहते है तो आज ही से बदले




तुझे एक नयी शुरुआत आज ही से करनी है
खुल के खुदसे बात आज ही से करनी है

जिस राह मिले तुझे छाया सुकून की
उस मंजिल की तलाश आज ही से करनी है

पल भर जो मिल कर रोशनी गम हो गई है कही
उन ख्वाहिशो से मुलाकात आज ही से करनी है

मुश्किल तेरी कोई तुझसे बड़ी नही
तुझे पेश ये मिसाल आज ही से करनी है

Thursday, December 29, 2011

जिन्दगी . . . . .

जिन्दगी को समझने में निकल रही है जिन्दगी

एक खाली किताब पढने में निकल रही है जिन्दगी



नक़ल हम भी बंदरो से कुछ कम नही करते

दुसरो के चोलो में निकल रही है जिन्दगी



जिन कहानियो में मेरा ज़िक्र तक नही है

उलझ कर उनमे निकल रही है जिंदगी



सुबह को शाम , शाम को सुबह का इंतज़ार करते है

ना जाने किस चाह में निकल रही है जिंदगी



जब सवाल नही उठा था तब खुश थे हम

पर अब एक सवाल बनके निकल रही है जिंदगी

Tuesday, August 23, 2011

तेरे इश्क में........


ऐसी बारिश हुई मैं हरी हो गयी
अबतक तो थी मैं खोटी अब खरी हो गयी

अब तक तो तन ये लगता था बेमोल बस माटी सा
तुने छुआ तो सोने की मैं जरी हो गयी

सौतन सी कुछ लगी तुझे छु के गुजरती हवा
सब कहने लगे देखो ये बावरी हो गयी

इलज़ाम था की मुझमे प्रेमरस नही बहता
तुझे शिद्दत से यु चाहा की मैं बरी हो गयी

जोगन सी बेटी देख कर रोती है मेरी माँ
छोरी ये जन मुसीबत नरी हो गयी

Tuesday, August 16, 2011

in support of jan lokpal.......


आवाज़ को हमारी आवाज़ तुम भी दो
लड़ाई जी शुरू की है इसे अंजाम तुम भी दो

हम मिल के बनायेंगे बंजर देश को गुलिस्ता
पसीने की बूँद अपनी दो चार तुम भी दो

डर को निकल दिल से कर दो चिता हवाले
जनशक्ति के इस शेर को दहाड़ तुम भी दो

ये जननी जन्म भूमि है स्वर्ग से महान
आज़ादी में इसकी योगदान तुम भी दो.....

Monday, February 14, 2011

प्रतिभा . . . . . . . .














एक दिन हवा का झौका
कुछ ऐसा संग-संग लाया
एक आँगन में तो एक छत की दिवार पे
पीपल का पेड़ उग आया

दोनों बड़े प्रगति के पथ
भर के बाजु में जोश अपार
एक में चीरा सीना धरती का
दूजे ने बेध डाली दिवार

पहले के देख हुए सब कुछ
माँ में सीचा पूजा भी की
दूजे को देख कर क्रोध जगा
काट फेक फिर तृप्ति की

प्रतिभा उगती पड़ो सी यहाँ
कुछ बढती कुछ कट जाती है
दीवारे है जिनकी किस्मत में
ठुन्ठो सी छटपटाती है