लगता है आसमान और भी नीला
जब होता है बचपन मेरे साथ
जब उस बड़े से कैनवास पर बनाती हु चाँद तारे
लहरों सी उमड़ जाती है मुस्कान
जब तारे बरसने लगते है बारिश में
और रात यु गुनगुनाती है की
पैरो में घुंगरू बज उठते है
जब तैरती हु मैं सागर में जलपरी की तरह
तो सूरज की किरने सोने सी बिखरने लगती है
हाथो में थमा देती है जादू की छड़ी
जब निंदिया मुझे बादल पे बिठा देती है
अक्सर पुराने अटाले में जादुई चिराग मैं खोज लेती हु
और आबरा का डाबरा कह के कुछ भी गायब कब देती हु
to be continued .....
missing childhood :(
ReplyDeleteवाह....बहुत सुन्दर कविता है श्वेता जी. बचपन को तो हम सभी ढूंढ्ते रहते हैं, तभी तो बचपन से जुड़े हमारे किस्से खत्म ही नहीं होते... मौका मिला नही कि बैठ गये पिटारा ले के :)
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति .
ReplyDeleteश्वेता जी,
ReplyDeleteआज आपके दोनों ब्लॉग पर एक ही पोस्ट दिख रही थी पर शायद आपने एक से हटा दी.....
बचपन ....जिसे सुनहरा बचपन कह सकते है ...किसी इंसान के जीवन का सबसे सुनहरा दौर होता है बचपन....जिसे आपने बहुत अच्छी तरह से बयान किया है.....बहुत सुन्दर |
अगर आप बुरा न माने तो एक बात कहना चाहूँगा.....आपकी टाइपिंग में काफी गलतियाँ हैं हो सके तो इनमे सुधार करें.....
हु - हूँ
यु - यूँ
घुंगरू - घुँघरू
किरने - किरणे
कब देती हु - कर देती हूँ
इन छोटी गलतियों से कई बार पूरी रचना का भाव बदल सकता है.....प्रकाशित करने से पहले अगर एक बार आप स्वयं पूरी रचना को पड़ लें....तो ये गलतियाँ खुद आपकी पकड़ में आ जायेंगी|
अगर कुछ गलत लगा हो तो माफ़ी चाहूँगा.....शुभकामनायें|
बाँच कर सुखद लगा
ReplyDeleteश्वेता जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता। बचपन के दिन और परियों की कहानी,दोनों ही देखने को मिलीं।
धन्यवाद।
good
ReplyDeleteशुभकामनाएं
ReplyDeleteसुंदर भाव ..यूँ ही आगे बढ़ते रहिये ....शुभकामनायें
ReplyDeleteचलते -चलते पर आपका स्वागत है
sach yaar missing childhood days,our school days
ReplyDeleteश्वेता,
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति है यह...बधाई!
और हाँ...ये जो चित्र चुना है...वह भी बड़ा प्यारा लगा...नन्ही परी सो रही है...उसे जगाकर गोद में खिलाने को दिल चाहता है!
continue kab???
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