क्या रात अब कोई बाकि है होने के लिए
अब बचा ही क्या है जिंदगी में खोने के लिए
सुख चुके है फूल कबसे खुशियों के मेरे
उन्होंने अब सिंची है जमी दर्द बोने के लिए
मेरे हाथ में आकर हीरे भी पत्थर हो जातेहै
मैं क्या भागूंगी चांदी कभी सोने के लिए
गम को मुस्कराहट में कुछ इस तरह ढाला है
सब दुआ मांगते है अक्सर मेरे रोने के लिए
कुछ इस तरह बिखर चुकी हु मैं की क्या कंहू
मिलता नही कोई मोती पिरोने के लिए
jabardast..
ReplyDeleteमेरे हाथ में आकर हीरे भी पत्थर हो जातेहै
मैं क्या भागूंगी चांदी कभी सोने के लिए
kya line hai!! superb!!
कुछ इस तरह बिखर चुकी हु मैं की क्या कंहू
ReplyDeleteमिलता नही कोई मोती पिरोने के लिए
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शब्दों के बड़े सुंदर मोती पिरोये हैं श्वेता..... अच्छी लगीं आपकी लिखी पंक्तियाँ
gr8
ReplyDeleteगम को मुस्कराहट में कुछ इस तरह ढाला है
ReplyDeleteसब दुआ मांगते है अक्सर मेरे रोने के लिए
loved these lines. really good
आपकी कविता पढ़ के मुझे अपनी जिंदगी का वो लम्हा याद आ गया..जब मैं इसी तरह के भावनाओं से गुजरा था..उस मंजिल को देखने के बाद आदमी बूंद से समंदर हो जाता है ..और तब उसके अंदर अथाह करूणा और प्यार पैदा हो जाता है जिसे वो जिंदगी भर दुनिया से बांटता रहता है.
ReplyDeleteइकबाल ने लिखा है..
हज़ारों साल से नर्गिश अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा
कविता मे दर्द छलकता है। मैं भी कुछ इसी तरह की कविताएँ लिखता हूँ। कभी विरह लेबल वाली कविताएँ मेरे ब्लॉग पर आ कर पढ़ें।
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