Wednesday, September 8, 2010

फिर कभी............


मेरी महफ़िल में लगता नही वो आयेंगे फिर कभी
छोड़ो ये अधुरा नगमा हम सुनायेंगे फिर कभी

बोहोत मशगुल है उनमे न जाने वक़्त से कितने
अपने लिए भी दो चार पर ले आयेंगे फिर कभी

मुझे डर है कही वो रो न दे इस हाल पे मेरे
नासूर मेरे दिल के उन्हें दिखायेंगे फिर कभी

दर्द देती है अगर ये यादे तो सुकून भी दे जाती है
बिखरे पन्ने ये जिंदगी के जलाएंगे फिर कभी

अभी तो जाने दो जंग लड़ने इस जिंदगी से
जिंदा रहे तो तुमसे मिलने आयेंगे फिर कभी

8 comments:

  1. मोहतरमा,
    आदाब अर्ज़ है!
    यूँ तो पूरी रचना खूबसूरत है.....
    लेकिन जिन लाईनों ने हार्ट को टच किया बाई गोंड, वो ये हैं:

    दर्द देती है अगर ये यादे तो सुकून भी दे जाती है
    बिखरे पन्ने ये जिंदगी के जलाएंगे फिर कभी!

    दुआ करता हूँ के ऊपर वाला आपके ''पंख'' को बेहद ऊंची परवाज़ दे!
    आमीन!
    आशीष
    --
    बैचलर पोहा!!!

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  2. A nice effort, pl pay attention to the 'Matra'!
    Happy Bloging!

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  3. aap sabhi ko tahe dil se dhanyawad..... :)
    @ktheLeo: i will definitely work towards that..

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  4. मेरी महफ़िल में लगता नही वो आयेंगे फिर कभी
    छोड़ो ये अधुरा नगमा हम सुनायेंगे फिर कभी

    बोहोत मशगुल है उनमे न जाने वक़्त से कितने
    अपने लिए भी दो चार पर ले आयेंगे फिर कभी

    मुझे डर है कही वो रो न दे इस हाल पे मेरे
    नासूर मेरे दिल के उन्हें दिखायेंगे फिर कभी

    bahut khoob .........

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  5. very well written..............
    really heart touching lines..

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  6. quite touching indeed !!!!! u really write well. keep it up.

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