ऐ बरखा आज बहा ले जा
गम की इस सुखी मिटटी को
मिलाकर इसे अनन्त सागर में
इसका अस्तित्व छीन छीन कर दे
ऐ बरखा आज भिगो दे तू
सुखी हुई हर क्यारी को
निष्प्राण हो रहे पौधों में
फिर से नयी जान भर दे
ऐ बरखा आज हटा दे तू
गुम्बद पे जमी इन परतो को
मंदिर के स्वर्णिम कलश को तू
फिर से वही चमक दे दे
ऐ बरखा आज चिर दे तू
उजली उजली इन किरणों को
कोरे मन के आकाश को तू
सतरंगी तोहफा दे दे
ra barkha tu itna na baras ki wo aan saka ,
ReplyDeletera barkha tu itna to baras ki wo ja na saka.