भटकते है हम किसकी चाह में
न मंजिल की खबर , न पैतरे की नज़र
न फूलो का चमन , बस कांटो की जलन
हम चलते गए राह के साथ में
भटकते है हम किसकी चाह में
न दीपक का बल , बस अँधेरे का दल
न बस है विष का कहर , न है कोई सुजल
जीवन से बिचड मौत की छाव में
भटकते है हम किसकी चाह में
न है वायु में कोई सुरीली सरगम
बस दिखाई देता सिर्फ गम और गम
क्यों बैठे है हम डोलती नाव में
भटकते है हम किसकी चाह में
अनजानी मंजिल की तुम्हे है कसम
सिर्फ चलते रहना तुम हर दम
मोड़ोगे कदम अगर सही चाह में
तो मंजिल मिलेगी हर एक राह में
भटकते है हम किसकी चाह में
ReplyDeletemilta hai humco ek din wo rah main
kaanto ki chubhan hoti hai madam......jalan nhi..!!!!
ReplyDeletehere m nt talkin abt the theme.....wo to outstanding hai....but thoda sa words ko aur polishing ki zarurat hai...
but m in luv wid dis one yaar......mast likhi hai....!!!
ReplyDeletekeep it up..!!!