Sunday, November 14, 2010

बचपन ......


लगता है आसमान और भी नीला
जब होता है बचपन मेरे साथ
जब उस बड़े से कैनवास पर बनाती हु चाँद तारे

लहरों सी उमड़ जाती है मुस्कान
जब तारे बरसने लगते है बारिश में
और रात यु गुनगुनाती है की
पैरो में घुंगरू बज उठते है

जब तैरती हु मैं सागर में जलपरी की तरह
तो सूरज की किरने सोने सी बिखरने लगती है

हाथो में थमा देती है जादू की छड़ी
जब निंदिया मुझे बादल पे बिठा देती है

अक्सर पुराने अटाले में जादुई चिराग मैं खोज लेती हु
और आबरा का डाबरा कह के कुछ भी गायब कब देती हु

to be continued .....

Sunday, November 7, 2010

दिल . . . .


दिल होना बोहोत आसान है ना
और दिमाग होना भी
मुश्किल तो मुझे है
जीना मुझे पड़ता है तुम दोनों के साथ

सब कहते है दिल कुछ होता ही नही है
"इट्स जस्ट अ पम्पिंग ओरगन"
पर मेरा दिल ये नही मान पाता
कि वो कही है ही नही ......

मैं महसूस करती हु उसे
धड़कने कि चाल को मेरी चाल के साथ
उसकी घबराहट मेरे डर जाने पे
उसकी छटपटाहट मेरे रिजल्ट आने पे
कैसे झुटला दू मैं उसे..??

हां हां बायो मैंने भी पड़ा है
मुझे भी बकवास लगी थी मूवी
"दिल ने जिसे अपना कहा"
पर क्या करू ??

दिल है कि मानता नही.... !!!!