चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये
नीला था जो था हरा कभी
मद्धम था जो वेगा कभी
काली पड़ी नदिया को चल निर्मल बनाए
छिन छिन पड़े इस नीर को फिर से बहाए
चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये
जो था सघन फैला कभी
पशु धन का था मेला कभी
बंजर बनी भूमि पे वन फिर से बिछाये
छोटे बड़े हर जीव को फिर से बसाये
चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये .......
चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये .........