Thursday, September 9, 2010

चल प्रभु ....


चल प्रभु तू मुझे कही दूर ले चल,

जहा मैं मुक्त हो खुद से तुझे महसुस कर पाऊ.

चंचल और विचलित लहरों में तेरी स्थिरता के दर्शन करू

इस नीले आकाश में तेरी भव्यता को निहारु

मुझमे प्रवित्ठ होती हर साँस में तुझे सम्मिलित पाऊ

तू मेरे अंतर्मन से मुझे मुक्त करदे प्रभु

ताकि मैं स्वयं को छोड़ तुझमे पल्लवित हो जाऊ

आंधी में उड़ते सूखे पत्ते की तरह बेफिक्र कर दे मुझे

ताकि मैं जीवन की धारा में स्वछंद रूप में बहती रहू

प्रभु तू हवा के हर झोके के साथ मुझे झकझोर

और फिर मैं बनकर अपनी शक्ति को मुझे महसुस करने दे

प्रभु तू अपनी सुन्दरता से मुझे सम्मोहित कर ले

ताकि संसार का कोई भी लोभ मुझे तेरे सामने तुच्छ लगे..

8 comments:

  1. सुन्दर भाव, प्रसंशनीय!

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  2. "ताकि संसार का कोई भी लोभ मुझे तेरे सामने तुच्छ लगे.."
    bahut hi sundar soch shweta jee...aur aapko citi bajani to preeti jee se hi seekhni hogi..

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  3. aur aap comment ke setting me jaa ke character varification hata deejiye..ham jaise aapke fan ho comment karne me aasani hogi..

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  4. ok saket ji.... thanks.. abhi nayi hu yaha... aap log aise hi sikhate rahenge to jaldi hi sab sikh jaungi.... :)

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  5. ताकि मैं जीवन की धारा में स्वछंद रूप में बहती रहू

    आमीन ..............

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  6. बहुत सुन्दर, ...ऐसा हो जाए तो फिर क्या बात..:)

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  7. sach me yaar last lines bahut achi hai

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