Sunday, March 23, 2014


चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये


चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये


नीला था जो था हरा कभी
मद्धम था जो वेगा कभी
काली पड़ी नदिया को चल निर्मल बनाए
छिन छिन पड़े इस नीर को फिर से बहाए
चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये

जो था सघन फैला कभी
पशु धन का था मेला कभी
बंजर बनी भूमि पे वन फिर से बिछाये
छोटे बड़े हर जीव को फिर से बसाये

चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये .......

चल हसरतो के गावँ एक पौधा लगाये .........

2 comments:

  1. Awesome....Loved this....Jaruri bhi hai yah.

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  2. फिर लिखना शुरु किया जाये.. :)

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