Friday, October 1, 2010

कब तक . . . . .


कटघरे में खड़ा पाया है कमजोर को मैंने
अमीरों पे यहाँ कभी कोई इल्जाम नही आया

जो बिक गया था रात ही सिक्को की छन छन के लिए
सुबह इंसाफ ने बुलाया तो वो आवाम नही आया

सुकून मिलता है मुझे जब गरीब सोता है भर पेट
सियासत की बदौलत कबसे आराम नही आया

रावण से कम कोई क्या होगा आज का नेता
बस उन्हें मारने अब तक कोई राम नही आया

सबने चलाया देश को अपने अपने हिसाब से
किताबो में लिखा संविधान किसी काम नही आया

11 comments:

  1. बहुत सही बात लिखी है आपने..लगता है अब इस युग में राम नही आयेंगे..

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  2. बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर. लिखती रहिए.
    शुभकामनाएं.

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  3. अच्छा लिखती हैं आप...
    जारी रखिए. बधाई.

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  4. कुछ पंक्तियां गंभीर एवं बेहतरीन हैं..
    हिंदी साहित्य में एक मुकाम की ओर लगातार बढ़ें, यही कामना है.....

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  5. क्या कर सकते हैं जी...
    अगर सब किताबों में लिखे संविधान से चलते तो बात ही क्या थी..

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  6. किताबों में लिखा संविधान बहुत काम का है . इक्का दुक्का लोग बच जाते है तो क्या हुआ. पर आप का लेखा बहुत शानदार है . मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी के लिए धन्यबाद.

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  7. आपकी लेखनी का मैं बहुत...बहुत..बहुत..बड़ा प्रशंशक हूँ..दो सप्ताह से आपकी कोई रचना पढ़ने को नहीं मिली..

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  8. WRITTEN GOOD.IT IS KALYUG.EVERYBODY WAITING FOR A RAM. BUT NOBODY WANTS TO BE A RAM........

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  9. रावण से कम कोई क्या होगा आज का नेता
    बस उन्हें मारने अब तक कोई राम नही आया

    अत्यंत सुन्दर॥ बधाई स्वीकारें।

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