Monday, February 14, 2011

प्रतिभा . . . . . . . .














एक दिन हवा का झौका
कुछ ऐसा संग-संग लाया
एक आँगन में तो एक छत की दिवार पे
पीपल का पेड़ उग आया

दोनों बड़े प्रगति के पथ
भर के बाजु में जोश अपार
एक में चीरा सीना धरती का
दूजे ने बेध डाली दिवार

पहले के देख हुए सब कुछ
माँ में सीचा पूजा भी की
दूजे को देख कर क्रोध जगा
काट फेक फिर तृप्ति की

प्रतिभा उगती पड़ो सी यहाँ
कुछ बढती कुछ कट जाती है
दीवारे है जिनकी किस्मत में
ठुन्ठो सी छटपटाती है

11 comments:

  1. @ पंख(स्वेता)आप रचनाओं से खुद को जोड कर देख पाये,बस इतना ही उद्देश्य होता है,रचना के अस्तित्व में आने का! "सच में" पर आते रहें!

    आप की रचना एक अच्छा प्रयास है!

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  2. प्रतिभा उगती पड़ो सी यहाँ
    कुछ बढती कुछ कट जाती है
    दीवारे है जिनकी किस्मत में
    ठुन्ठो सी छटपटाती है

    सोचनीय और विचारणीय पहलू है इन पंक्तियों में.

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  3. .शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  4. बहुत सुंदर...... आज के दिन आपको मेरी प्यार भरी शुभकामनायें

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  5. प्रतिभा उगती पड़ो सी यहाँ
    कुछ बढती कुछ कट जाती है
    दीवारे है जिनकी किस्मत में
    ठुन्ठो सी छटपटाती है

    सामाजिक व्यवस्था की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  6. प्रतिभा उगती पड़ो सी यहाँ
    कुछ बढती कुछ कट जाती है
    दीवारे है जिनकी किस्मत में
    ठुन्ठो सी छटपटाती है

    बहुत ही सार्थक और प्रासंगिक भाव लिए रचना है श्वेता ...... प्रभावी अभिव्यक्ति....
    ------
    चैतन्य के ब्लॉग से जुड़ने के लिए आभार

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  7. bahut hi accha prayas hai...prtibha ka ugna dekh raha hun...badhayi.

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  8. आपने कविता का प्लॉट बेहद समसामयिक उठाया है सम्मानिया श्वेता जी. कविता बेहद ही अच्छी और मुकम्मल है. माफ़ कीजियेगा वर्तनी/टाइप पर थोड़ा सा ध्यान दिया जाए तो इतनी सशक्त अभिव्यक्ति पाठकों को पढ़ने में थोड़ी सुविधा रहेगी. कृपया मेरी बात को अन्यथा न लीजियेगा.
    इस बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद और बधाई. सादर !

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  9. Bahut sundar hamre blog par bhi aaye hume achha lagega

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  10. Bahut hi sundar aur saamyik.....Abhaar!!!

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