Tuesday, August 23, 2011

तेरे इश्क में........


ऐसी बारिश हुई मैं हरी हो गयी
अबतक तो थी मैं खोटी अब खरी हो गयी

अब तक तो तन ये लगता था बेमोल बस माटी सा
तुने छुआ तो सोने की मैं जरी हो गयी

सौतन सी कुछ लगी तुझे छु के गुजरती हवा
सब कहने लगे देखो ये बावरी हो गयी

इलज़ाम था की मुझमे प्रेमरस नही बहता
तुझे शिद्दत से यु चाहा की मैं बरी हो गयी

जोगन सी बेटी देख कर रोती है मेरी माँ
छोरी ये जन मुसीबत नरी हो गयी

7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर शब्दों के चयन द्वारा सुन्दर विचारों को सुन्दर कविता का रूप दिया है आपने :))

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  2. अच्छी कविता | आपका ब्लॉग अच्छा लगा | फोलो भी कर लिया |
    कृपया मेरी रचना देखें और ब्लॉग अच्छा लगे तो फोलो करें |
    सुनो ऐ सरकार !!
    और इस नए ब्लॉग पे भी आयें और फोलो करें |
    काव्य का संसार

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  3. sundar rachna!!

    agar kabhi samay mile to mere blog ko ek dafe dekhen. . http://kushkikritiyan.blogspot.com/

    aabhar,
    shiva

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  4. प्रिय श्वेता जी
    सस्नेहाभिवादन !


    तेरे इश्क में...ऐसी बारिश हुई मैं हरी हो गयी
    बहुत सुंदर ! मन को छूती हुई पंक्ति है !

    इलज़ाम था कि मुझमें प्रेमरस नही बहता
    तुझे शिद्दत से यूं चाहा कि मैं बरी हो गयी

    वाह ! भाव और शब्दों के तालमेल से बहुत रोचक लिखा आपने , बधाई ! …और हां , नरी शब्द का आपने अच्छा प्रयोग किया :)

    इसी से जुड़ता एक बंध मेरी ओर से भी …
    हैरां है ज़माना मुझे देख-देख कर आजकल
    मैं इसी जहां की हूं या परी हो गई

    :)

    आपको सपरिवार
    बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
    आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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