
ऐ रात क्या तू सचमुच इतनी खामोश है की ,
मैं सुन पाऊ सिर्फ झींगुरो की आवाज़
या पत्तो से टकराती हुई हवा की चीत्कारे
ऐ रात क्या तू सचमुच छुपा सकती है
नदी के साथ बहती हुई अश्रु धरा को
या अँधेरे की भीड़ में बिकते हुए जस्बातो कों
ऐ रात क्या तू सचमुच बंद कर पायेगी
अधरे सपनो की तरफ ताकती अनगिनत आँखों कों
या नशे ने चूर सडको पे दौड़ती हक्ल्चल कों
ऐ रात क्या तू सच में रोक पाएगी
मेरे धरा प्रवाह से बड़ते हुए इन प्रश्नों कों
या चुपचाप करेगी इंतजार अपने बीत जाने का..
very nice-----
ReplyDeletethanks :)
ReplyDeleteaapka blog visit kiya.... bohot accha hai.... :)