Saturday, August 28, 2010

ऐ बरखा..


ऐ बरखा आज बहा ले जा
गम की इस सुखी मिटटी को
मिलाकर इसे अनन्त सागर में
इसका अस्तित्व छीन छीन कर दे

ऐ बरखा आज भिगो दे तू
सुखी हुई हर क्यारी को
निष्प्राण हो रहे पौधों में
फिर से नयी जान भर दे

ऐ बरखा आज हटा दे तू
गुम्बद पे जमी इन परतो को
मंदिर के स्वर्णिम कलश को तू
फिर से वही चमक दे दे

ऐ बरखा आज चिर दे तू
उजली उजली इन किरणों को
कोरे मन के आकाश को तू
सतरंगी तोहफा दे दे

1 comment:

  1. ra barkha tu itna na baras ki wo aan saka ,
    ra barkha tu itna to baras ki wo ja na saka.

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