
वो ले लेते है कितनी जाने बस चटकारे के लिए
बिना सोचे की वो किसी परिवार का हिस्सा है
मैं खुद से पूछती हु जब तो सहम जाती हु !!
"क्या वो अपने परिवार से प्यार नही करते??"
दादी जब सुनती है कहानिया जंगली जानवरों की
जो खा जाते है निर्ममता से दुसरे जीवो को
मैं खुद से पूछती जब तो सहम जाती हु !!
वो बन चुके है जानवर या बन रहे है.....
वो कहते है हम रोकते है बदती हुई पशु संख्या को
ये कर्त्तव्य है हमारा इस दुनिया के प्रति
मैं खुद से पूछती हु जब तो सहम जाती हु !!
"जनसँख्या तो इस देश की भी बढ रही है"
वो बनाते है बहाना कभी धर्म कभी रिवाज़ का
कहते है यही लिखा है ग्रन्थ पुरानो में
मैं खुद से पूछती हु कुछ और सहम जाती हु !!
"ये कौन सा धर्म है जो मनुष्य धर्म से बड़ा हो गया"
मेर Blog पर आपको इसी भाव से लिखी रचना
ReplyDelete"मुर्ग मुस्सलम और पानी!"
पढने का आमन्त्रण है!
sateek hai
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