Saturday, August 28, 2010

ताज़ा कटी लकड़ी........


चाहत भी उस खुदा से जताई नही जाती
इस तरह जिंदगी भी बितायी नही जाती

अहसान के छप्पर से भली धुप मुसीबत की
दिल से करी मदद गिनाई नही जाती

थोड़ी सी धुप और देदो वक़्त की मुझको
ताज़ा कटी लकड़ी जलाई नही जाती

दौर ये दर्द का कभी ख़त्म क्या होगा?
सियासत को हुकूमत सिखाई नही जाती

महफ़िल ये लतीफो की बंद भी कीजिये
दस्ताने ऐ दिल और अब सुनाई नही जाती

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