Saturday, August 28, 2010
अनंत प्रश्न .....
क्या मैं कुछ भी नही हूँ ?
इन उमड़ती हुई लहरों के सामने ...
क्या मैं दिशाहीन हूँ ?
अगर नही ,
तो क्यों रोक देती है ये मुझे
इनके विरुद्ध बहने से ?
और डूबा देती है
सवेग उमंगो को.....
क्या मैं कुछ भी नही हूँ ?
इस विशाल अम्बर के सामने....
क्या मेरा कोई अस्तित्व नही है ?
अगर है ...
तो क्यों ये अपना साया
हर पल मुझ पर रखता है
या मेरी ही शिथिलता
इससे भाग नही पाती....
क्या मैं कुछ भी नही हूँ ?
इस सहनशील धरती के सामने..
क्या मैं ह्रदयहीन हूँ
अगर नही
तो क्यों इन कठोर चट्टानों के सामने भी
मैं ही कठोर प्रतीत होती हू
या मेरे ही क्रोध की डिबिया
गुणों की मंजुषा से भरी है...
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dunia main sab ka astitwa hai har choti sai choti sabki upyogita hai .
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