Saturday, August 28, 2010

कैसे????


कैसे करू यकीन अब खुदाई पे
जब जीत जाती है एक बुराई सौ अच्छाई पे

एक वक़्त था जब रोई हु बहुत सबकी बातो से
अब तो हंसी आती है अपनी जग हसाई पे

इमां अपना बेच के नुक्कड़ चौरोहो पे
वो रख रहे है सभा बढती महंगाई पे

बेनकाब हुई जो दुनिया तो आलम ये है की
न चाह कर भी शक होता है किसी की भलाई पे

अभी तक सो रहे थे वो गहरी नींद में
आज जगे है तो सवाल उठाया है हमारी जम्हाई पे


जिन्दगी की गलिया वीरान तब हो गयी
जब हम भी रूठ गए सबकी रुसवाई पे

2 comments:

  1. बेनकाब हुई जो दुनिया तो आलम ये है की
    न चाह कर भी शक होता है किसी की भलाई पे
    rahiman chup rah baithiya,dekh dinan kai fare,
    phir nika(good)din aayaga ,bahur na langiya dair,(have a wait for good time)

    ReplyDelete